ट्रंप के आने के बाद, 12 साल पुराने न्यूक्लियर प्रोजेक्ट पर बन सकती है बात
नई दिल्ली। डोनाल्ड ट्रंप का भारत दौरा कुछ प्रोजेक्ट्स के वनवास को खत्म कर सकता है। जिनमें से एक 6 न्यूक्लियर रिएक्टर्स का प्रोजेक्ट जो 2008 से ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। वास्तव में यह प्रोजेक्ट मनमोहन सरकार के दौरान हुए परमाणू समझौते के समय से पेंड पर है। इस बार भारत की सरकारी कंपनी न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन लिमिटेड और अमरीकी कंपनी वेस्टिंगहाउस के बीच समझौता हो सकता है। आपको बता दें कि कुछ दिन पहले अमरीकी कंपनी का एक दल इस प्रोजेक्ट भारत में आया था।
12 साल से अटका है यह प्रोजेक्ट
वास्तव में इस प्रोजेक्ट की नींव 2008 में दोनों देशों के बीच न्यूक्लियर डील के दौरान ही पड़ चुकी है। जिस समय में अमरीका ने भारत को न्यूक्लियर रिएक्टर्स बेचने की कही थी। पिछले साल दोनों देशों की ओर से ऐलान भी हुआ कि भारत में 6 न्यूक्लियर रिएक्टर्स लगाए जाएंगे। इसी के तहत बीते सप्ताह वेस्टिंगहाउस का एक दल भारत भी आया था।
कंपनी ने न्यूक्लियर निर्यात बढ़ाने को लेकर डिटेल में चर्चा की थी। अगर भारतीय और अमरीकी कंपनियों के बीच समझौता होता है तो दक्षिण भारत के कोवाड्डा में इन रिएक्टर्स को स्थापित किया जाएगा। इसके लिए एक टाइमलाइन डिसाइड होगी। वहीं भारत के परमाणु दायित्व कानून पर देश की काफी चिंताएं खत्म होगी।
भारतीय कंपनी से हुई है बात
अमरीकी ऊर्जा विभाग की अधिकारी रीता बरनवाल के अनुसार वेस्टिंगहाउस और एनपीसीआईएल के बीच एक मेमोरेंडम पर साइन हो सकते हैं। वहीं इूसरी ओर वेस्टिंगहाउस की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा ने भी इस बात कंफर्म किया था कि न्यूक्लियर पॉवर प्रोजेक्ट को लेकर वेस्टिंगहाउस और एनपीसीआईएल के बीच चर्चा हुई है।
2017 में दिवालिया हो चुकी थी वेस्टिंगहाउस
आपको जानकर हैरानी होगी कि न्यूक्लियर रिएक्टर्स को लेकर जिस वेस्टिंगहाउस के साथ डील होने की बात हो रही है वो 2017 में दिवालिया हो चुकी थी। 2018 में इस कंपनी को कनाडा की कंपनी ब्रूकफिल्ड एसेट मैनेजमेंट ने तोशिबा से वेस्टिंगहाउस को खरीद लिया था। जिसके बाद से ही दोनों देशों के बीच न्यूक्लियर प्रोजेक्ट को लेकर बात आगे बढ़ी है। वेस्टिंगहाउस शुरू से ही भारत को एपी1000 रिएक्टर्स सप्लाई करना चाहता है।
वेस्टिंगहाउस ने यही रिएक्टर्स चीन को भी सप्लाई किए हैं। प्रोजेक्ट पर एक ही ऐसी बात है जिसकी वजह से बात बिगडऩे की संभावना दिखाई दे रही है और वो है लायबिलिटी पॉलिसी। पॉलिसी के तहत किसी एटमी हादसे के समय पूरी जिम्मेदारी सप्लायर कंपनी पर मढऩे की बात की गई है ना कि प्लांट ऑपरेटर की। जिसके सुलझने के प्रयास किए जाएंगे। मोदी सरकार की ओर से इसके लिए एक इंश्योरेंस फंड तैयार करने की भी बात कही है। जिस पर दोनों देशों की सहमति भी बन चुकी है।
सोलर पॉवर भी ज्यादा ध्यान दे रही है मोदी सरकार
सरकार का मानना है कि 2031 तक एटमी पावर स्टेशनों से 22,480 मेगावाट बिजली पैदा होगी जो 2019 के 6780 मेगावाट से ज्यादा होगी। हालिया वर्षों में रिन्यूएबल एनर्जी से पैदा की गई बिजली की लागत में गिरावट देखने को मिली है। जिसकी वजह से सरकार ध्यान इस ओर गया है। सरकार न्यूक्लियर पॉवर पर निर्भरता कम बढ़ाएगी। सरकार का ध्यान सौर ऊर्जा पर ज्यादा है लेकिन एटमी ऊर्जा बढ़ाने में भी उसकी दिलचस्पी दिखाई जा रही है।
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