आखिर क्यों समय पर मिलना चाहिए था, करेंसी नोटों से फैल सकता है वायरस का जवाब, जानिए इस रिपोर्ट में

नई दिल्ली। देश में कोरोना वायरस के लगातार केसों में इजाफा हो रहा है। दुनिया के सबसे लॉकडाउन लगाने के बाद भी आज भारत कोरोना केसों के मामने में अमरीका के बाद दूसरे नंबर पर है। तमाम रियायतों के बाद भी देश में कोरोना मामलों के बढऩे क्या वजह है? इसके लिए हमे 6 महीने पीछे मुढ़कर देखने की जरुरत है। जब कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स सरकार और आरबीआई से सवाल किया था कि क्या करेेंसी नोटों से कोरोना वायरस फैलने का खतरा है या नहीं? जिसका जवाब अब करीब 6 महीने के बाद आया है। उस वक्त से अब तक देश में कोरोना मामलों की संख्या में 65,49,273 का इजाफा हो चुका है।

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9 मार्च को पूछा था सवाल, तब देश में 100 केस भी नहीं
कोरोना वायरस को लेकर भारत सरकार द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना पूरी दुनिया भले ही कर रही हो, लेकिन लापरवाही का आलम यह है कि सिस्टम को एक सवाल का जवाब देने में 6 महीने से ज्यादा लग गए कि हां करेंसी नोटों से कोरोना वायरस का प्रसार होने की संभावना है। कंफेडरेशन की ओर से जब इस सवाल का जवाब वित्त मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और आईसीएमआर से मांगा गया था तब देश में कोरोना वायरस की संख्या 100 भी पार नहीं हुई थी, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 14 मार्च को देश में कोरोना वायरस के 100 मामले थे और अगर इसी को आधार मान लिया जाए तो सरकार को इस बात का जवाब देने के लिए 6549273 और बढ़ जाने तक का इंतजार करना पड़ा। आरोग्य सेतु एप के अनुसार मौजूदा समय में कोरोना वायरस केसों की संख्या 65,49,373 है।

क्या आया जवाब
कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पुष्टि की है कि करंसी नोट कोरोना के संभावित वाहक हो सकते हैं। कैट ने एक बयान में कहा है कि मंत्रालय से यह पत्र आरबीआई को भेज दिया गया था। उसने सीएआईटी को संकेत देते हुए जवाब दिया था कि नोट बैक्टीरिया और वायरस के वाहक हो सकते हैं, जिसमें कोरोना वायरस भी शामिल है। लिहाजा, इससे बचने के लिए डिजिटल भुगतान का अधिक से अधिक उपयोग किया जाना चाहिए। पत्र में आरबीआई ने आगे कहा है कि कोरोना वायरस महामारी को फैलने से रोकने के लिए जनता विभिन्न ऑनलाइन डिजिटल चैनलों जैसे मोबाइल और इंटरनेट बैंकिंग, क्रेडिट और डेबिट कार्ड आदि के माध्यम से घर बैठे भुगतान कर सकती है। इससे वह नकदी का उपयोग करने और निकालने से बचेगी।

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क्यों जरूरी था इस सवाल का जवाब?
सवाल भले ही काफी छोटा था, लेकिन भारत और भारतीयों के लिए काफी अहम था। इसका कारण है देश में लोगों द्वारा कैश ट्रांजेक्शन का चलन। देश में आज भी लोग कैश लेन देन में ज्यादा भरोसा रखते हैं। ऐसे में करेंसी नोटों पर इस्तेमाल ज्यादा होता है। जोकि एक साथ से दूसरे हाथ और ना जाने कितने हाथों से गुजरता है। इसी बीच कोई करेंसी नोट ऐसे शख्स के हाथ से गुजरकर आए जिसे कोरोना वायरस हो तो वो कितना खतरनाक हो सकता है इसका अंदाजा आप देश में कोरोना वायरस के कुल मामलों को देखकर लगा सकते हैं। कारण है कि आज भी लोग करेंसी नोटों को गिनने के लिए पानी से ज्यादा मुंह का लार का इस्तेमाल करते हैं।

कैट ने की मांग
सीएआईटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया और महासचिव प्रवीण खंडेलवाल के अनुसार, आरबीआई का जवाब बताता है कि डिजिटल भुगतान का उपयोग ज्यादा से ज्यादा होना चाहिए। सीएआईटी ने निर्मला से लोगों में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए 'इंटेंसिव' देने की योजना शुरू करने का आग्रह किया है। बयान में कहा गया है कि डिजिटल लेनदेन के लिए लगाए गए बैंक शुल्क को माफ किया जाना चाहिए और सरकार को बैंक शुल्क के बदले बैंकों को सीधे सब्सिडी देनी चाहिए। यह सब्सिडी सरकार पर वित्तीय बोझ नहीं डालेगी, बल्कि यह नोटों की छपाई पर होने वाले खर्च को कम कर देगी।

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भारत में डिजिटल ट्रांजेक्शन की स्थिति
भारत में डिजिटल ट्रांजेक्शन में यूपीआई की ही बात करें तो वित्त वर्ष से नहीं बल्कि उससे भी एक महीने पहले मार्च से शुरू करना जरूरी है, क्योंकि कोरोना का प्रसार इसी महीने से शुरू हुआ था और लॉकडाउन भी इसी महीने में लगा था। एनसीपीआई के डाटा के अनुसार मार्च में यूपीआई से 1.25 बिलियन ट्रांजेक्शन देखने को मिला था जोकि फरवरी के मुकाबले 5 फीसदी कम था। अगर बात अप्रैल की बात करें तो 20 फीसदी से ज्यादा पहुंच गई थी और यूपीआई ट्रांजेक्श 1 बिलियन से कम हो गया था। उसके बाद यूपीआई ट्रांजेक्शन ने रफ्तार पकड़ी है और सितंबर महीने में यह आंकड़ा 1.80 बिलियन की ओर पहुंच गया है।

कोरोना काल में UPI ट्रांजेक्शंस

महीना UPI ट्रांजेक्शंस की संख्या ( बिलियन में )
मार्च 1.25
अप्रैल 0.99
मई 1.23
जून 1.34
जुलाई 1.5
अगस्त 1.61
सितंबर 1.80


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