अगर दो हफ्तों तक बढ़ा लॉकडाउन तो जीडीपी के डेढ़ फीसदी पर आने का अनुमान
नई दिल्ली। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक कर इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि देश में लॉकडाउन को बढ़ाया जाए या नहीं। कई देश तो पहले से ही इस बारे में अपने अपनी हरी झंडी दे चुके हैं कि लॉकडाउन को बढ़ाया जाना चाहिए। उनमें से कुछ ने कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देखते कफ्र्यू 30 अप्रैल तक बढ़ा भी दिया है। अगर प्रधानमंत्री की बैठक में लॉकडाउन बढऩे की बात होती है तो देश की इकोनॉमी पर गहरा असर पडऩे की संभावना दिखाई दे रही है। आशा की बात ये है कि देश की जीडीपी का अनुमानित आंकड़ा उसके बाद भी जीरो से नीचे नहीं जाएगा। बीते दो दशकों में आए ग्लोबल रिसेसशंस की बात करें तो भारत के आर्थिक आंकड़ों पर उतना ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा है, जितना दुनिया की बाकी इकोनॉमीज पर देखने मिला है, लेकिन इस बार माहौल अलग है। पूरा लॉकडाउन है, ऐसे में इकोनॉमी को नुकसान होना तय माना जा रहा है। आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर 15 दिनों का लॉकडाउन बढ़ता है तो देश की इकोनॉमी को किस तरह से नुकसान देखने को मिल सकता है।
जीडीपी में और गिरावट संभव
मौजूदा समय में आईएमएफ से लेकर वल्र्ड बैंक, मूडीज, फिंच और आर्थिक एजेंसियों के भारत के लिए अनुमानित जीडीपी के आंकड़े पेश किए हैं, उनका औसत करीब 2 फीसदी के आसपास है। यह अनुमान तीन हफ्तों के लॉकडाउन और देश में बंद पड़े प्रोडक्शन और कोरोना वायरस के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए लगाया गया है। अगर देश प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों का समूह लॉकडाउन को 30 अप्रैल तक करने के लिए राजी हो जाता है तो जीडीपी के अनुमानित आंकड़े में 0.5 फीसदी के बदलाव होने यानी कम होने की संभावना है। केडिया कमोडिटीज के डायरेक्टर अजय केडिया के अनुसार 15 दिनों के लॉकडाउन बढ़ाने से अधिकतम 0.5 फीसदी ही मौजूदा अनुमान में कम होंगे। उनका कहना है कि देश की अनुमानित जीडीनी 1.5 फीसदी से ज्यादा नीचे जाने की संभावना नहीं है। इसका कारण है कि भारत कंज्यूमर बेस्ड इकोनॉमी है। ऐसे में जैसे ही देश में कंजंप्शन बढ़ेगा वैसे देश के बाजारों में लिक्विडिटी बढ़ जाएगी। डिमांड आने से प्रोडक्शन में भी इजाफा होगा और देश की इकोनॉमी को रफ्तार मिलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
इतिहास भी दे रहा है गवाही
अजय केडिया के अनुसार दो दशकों के दौरान जितने भी ग्लोबल इकोनोमिक क्राइसिस आए उस दौरान भारत की इकोनॉकी को कभी निगेटिव कैटेगिरी में नहीं डाला गया। इसे आंकड़ों के जरिए समझने का प्रयास करते हैं। 2004-05 में रिसेसशन की वजह से भारत की जीडीपी 4.4 फीसदी थी, लेकिन देश का इंवेस्टमेंट ग्रोथ उस समय 24 फीसदी था, जिसकी वजह से देश उस रिसेसशन से उबर पाया। जिसकी बदौतल 2007-08 में देश की जीडीपी 9.3 फीसदी पर आ गई थी। उस दौरान देश का इंवेस्टमेंट ग्रोथ 16.2 फीसदी पर था। 2008 में पूरर दुनिया में मंदी छाई, लेकिन दौरान भारत की इकोनॉमिक नीतियों और कंजंप्शन इकोनॉमी वजह से देश की जीडीपी नेगेटिव पर नहीं गई। जबकि अमरीका को काफी नुकसान हुआ था। 2008-09 में देश की जीडीपी 6.7 फीसदी के आसपास थी, जबकि इंवेस्टमेंट ग्रोथ 3.5 फीसदी था। 2011-12 में देश की जीडीपी हल्कह गिरावट देखने को मिली थी, जो 6.2 फभ्सदी पर आ गई थी और इंवेस्टमेंट ग्रोथ 4.4 फीसदी थी। 2019-20 में दिसंबर तक तक देश की जीडीपी का अनुमान 6.2 फीसदी ही था, इंवेस्टमेंट ग्रोथ 28.8 फीसदी था। जो बदलकर 4.5 फीसदी पर आ गया था।
नुकसान में होगा करीब 6 लाख करोड़ रुपए का इजाफा
वहीं बात 15 दिनों में डीजीपी के नुकसान की बात करें तो 6 लाख करोड़ रुपए अनुमान लगाया जा रहा है। वास्तव में बर्कलेज बैंक की रिपोर्ट के अनुसार देश की जीडीपी को 3 हफ्तों के लॉकडाउन में 9 लाख करोड़ रुपए के नुकसान हो सकता है। अगर इस रिपोर्ट को ही आधार मानकर चले तो एक हफ्ते में 3 लाख करोड़ और दो हफ्तों में 6 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होने की संभावना है। यानी देश को 25 मार्च से लेकर 30 अप्रैल तक पांच हफ्तों में 15 लाख करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान लगाया जा रहा है।
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