अगर आप भी हैं किसी के लोन के गारंटर तो डिफॉल्‍ट होने पर उसका लोन चुकाने को रहें तैयार

कोरोना महामारी के कारण कई लोगों की कमाई पर असर पड़ा है। इसी के चलते कई लोगों को अपना लोन चुकाने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में अगर कोई कर्जदार लोन की किस्तें नहीं चुका पा रहा है तो लोन का डिफॉल्ट होने पर न केवल लोन लेने वाले व्यक्ति बल्कि गारंटर को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अगर आप भी ऐसे ही किसी मामले में गारंटर हैं तो यहां हम बता रहे हैं कि ऐसे में आपको क्या करना चाहिए।


डिफॉल्ट होने पर क्‍या करें?
एक बार जब आप गारंटर बन जाते हैं तो जिम्मेदारी से बाहर निकलना मुश्किल होगा। गारंटी केवल ऐसे मामले में दी जानी चाहिए, जहां आप मूल खाताधारक का भुगतान नहीं करने पर लोन का बोझ उठाने के लिए तैयार हों। अगर कर्ज लेने वाला व्‍यक्ति नियमित रूप से किस्तों का भुगतान नहीं कर रहा है और बैंक आपको कर्ज चुकाने के लिए कह रहा है तो कर्ज लेने वाले से बात करके आप लोन चुका सकते हैं। ऐसा करने पर गारंटर इंडियन कॉन्‍ट्रैक्‍ट एक्‍ट के तहत कर्ज लेने वाले से बाद में पैसा वसूल कर सकता है।


गारंटर से हटने के लिए क्या करें?

अगर आप किसी के गारंटर हैं और अब हटना चाहते हैं तो ये आसान नहीं है। इसकी परमिशन बैंक तब तक नहीं देते हैं जब तक कर्ज लेने वाला व्‍यक्ति कोई और गारंटर नहीं तलाश लेता है। नया गारंटर मिलने के बाद लोन लेने वाले व्यक्ति, गारंटर और वो व्यक्ति जिसे आप गारंटर बनाना चाहते हैं, को बैंक में संपर्क करना होगा। हालांकि दूसरा गारंटर ढूंढ लेने के बावजूद यह बैंक पर निर्भर करता है कि वह इसकी अनुमति देता है कि नहीं।


इंश्योरेंस लेना जरूरी
गारंटर को कर्ज लेने वाले से पर्याप्‍त लोन इंश्योरेंस कवर खरीदने पर जोर देना चाहिए। इससे कुछ अनहोनी होने पर लोन को अदा करने की जिम्‍मेदारी गारंटर पर नहीं आएगी। इश्योरेंस कवर के पैसों से लोन की रकम का भुगतान किया जा सकेगा।


कब जरूरी होता है गारंटर?
बैंक सभी लोन के लिए गारंटर पर जोर नहीं देते हैं। लेकिन, जब गारंटी पर्याप्‍त नहीं होती है और उन्‍हें कर्ज के चुकाए जाने पर संदेह होता है तो वे ऐसा करने के लिए कहते हैं। बड़ी राशि के लोन के लिए गारंटर का होना जरूरी है।


गारंटर को लेकर क्या हैं नियम?
नियमों के मुताबिक किसी लोन की गारंटी देने वाला व्‍यक्ति भी लोन लेने वाले व्‍यक्ति के बराबर कर्जदार होता है। डिफॉल्ट की स्थिति में बैंक पहले कर्जदार को नोटिस भेजता है और उसका जवाब नहीं आने पर कर्जदार के साथ ही गारंटर को भी नोटिस भेजा जाता है। बैंक जितना हो सकेगा कर्जदार से ही वसूली की कोशिश करेगा, लेकिन असफल रहने पर गारंटर को भी डिफॉल्ट के लिए जिम्मेदार माना जाएगा।



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